Friday 30 October 2015
Tuesday 6 October 2015
वर्तमान में "भारत" पर इंडिया हावी...
जी हाँ पढ़ कर कुछ अटपटा लगा होगा लकिन वास्तविकता यही है की आज के २१ वी सदी में हम भारत को भूल कर अपना रुख इंडिया की तरफ कर रहे है....लेकिन आप यह बिलकुल ही भूल रहे है की उस इंडिया में एक भारत भी निवास करता है.....जो की प्रायः गांवो में बसता है...
आज की युवा पीढ़ी भारत को भूल कर इंडिया के साथ खरे है...जी हाँ वही इंडिया जिसका नाम विदेसीओ ने दिया है...विदेशी तो भारत से १९४७ में चले गए लकिन जाते जाते काफी कुछ उन्होंने यहाँ छोर दिया जिसमे अंग्रेजी भाषा , पशिचमी सभ्यता संस्कृति ,आदि प्रमुखतः छोड़ गए जो वर्तमान में हम भारतवासिओ पर मुख्यतः हावी है|
आज के युवाओ का रुझान गांवो से बिलकुल ही हट गया है...वे पिछड़े भारत में नहीं प्रगतिशित इंडिया में रहने को उत्सुक है हालांकि ऐसे युवाओ की संख्या १०० % नहीं है लकिन जो भी है उनमे कुछ विशेषताए है उनकी कल्चर विदेशी है भाषा अंग्रेजी है....वे जानभूझ कर हिंदी बोलना नहीं चाहते
आज एक तरफ इंडिया दिन दूनी रात चुगुनी प्रगति कर रहा है तो वही दूसरी तरफ भारत भूख से रो रहा है...एक तरफ वयवसाय और पूंजीपति वर्ग इंडिया में अपनी खुशहाल जिंदगी वयतीत कर रहे है तो दूसरी तरफ भारत के किसान आत्महत्या करने को मजबूर है....
आज का भारत भूख से रोता है...ठंढ से कापता है....इंडिया इसे देखकर नाक भव सिकोरता है...(यह वाक्य मैंने इस संदर्भ में लिखा है की आज के पूंजीपति के बच्चो को या पूंजीपतियों के परिवार को किसी पिछड़े ग्रामीण इलाके में ले जाकर वहां की मुलभुत सुविधाओ में २ घंटे रख दिए जाए तो उनके जुबान से निश्चित ही यह शब्द निकल परता है....O my god...i hate villagers...i hate village
एक बात और अगर आपका जन्म १९ वी सदी के भारत में हुआ है तो एक बात आप भी बखूबी मिला सकते है....जब हम जन्मे थे तो अपन का बचपन तो पारले-जी बिस्किट से ही कट गया जो उस समय ३ रूपए के १२ की पैकेट आती थी...
आज के बड़े घराने के बच्चे तो OREO और DARK_FANSTY से कम में सुनते नहीं...पारले जी तो उनके लिए कुत्तो के खाने का बिस्किट है....आपन लोग का बचपन तो १ रुपये में १२ लेमनचूस से गुजरा है...खुद भी कहते थे दोस्तों को भी खिलाते थे...लकिन आज के इंडियन बच्चे "डेरी मिल्क सिल्क" से निचे मानने को तैयार नहीं होत....
आज का इंडिया हरियाली को तरसता है तो वही गांवो में पूर्ण हरियाली है |
मित्रो याद करिये उस गांधी को जिसने इस भारत को आाजदी दिलाई याद करिये कलाम शाहब जैसे महापुरुस को जिन्होंने भारत को एक नई उचाइओ पर ले गए लकिन उनकी भी शुरआत गांवो से ही हुई है....इनलोगो का एक उदेस्य था "चलो गांवो की ओर"
कहते हुए दुःख होता है की आज गांधी और कलाम नहीं है...इसलिए हमें चाहिए की अपने अंदर एक गांधी पैदा करे...अपने अंदर कलाम पैदा करे...इस सतरंगी इंडिया को छोर पुनः गावो से एक नई शुरुआत करे....तभी हम एक सच्चे और अच्छे भारतवाशी कहलायेंगे और सही मायने में तभी हमे एक सच्चे भारतवासी होने का गौरव प्राप्त होगा.....जय हिन्द
लेखनी:-विकाश जी
संपर्क सूत्र :-7870213118
Sunday 4 October 2015
तो आज के युवाओ को शर्म आती है हिंदी बोलने में.....
यु कहु तो हिंदी हमारी राष्ट्रभासा है लकिन इस राष्ट्रभाषा को जो सम्मान हिन्दुस्तान के युवाओ से मिलनी चाहिए वह नही मिल पा रही रही...आज के युवा हिंदी बोलने में खुद को असहज महसूस करते है...उन्हें तो विदेशी भाषा अंग्रेजी से ही प्यार है....थोड़ी बहुत अंग्रेजी क्या सिख ली वे हिंदी को इस कदर भूल जाते है जैसे उनका इस मातृ भाषा से कोई लगाव ही नहीं....
मै अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उन अंग्रेजी भसी युवाओ को याद दिलाना चाहता हु की जन्मोपरांत तुम्हे सबसे पहले जो शब्द बोला वह हिंदी भाषा में ही थी....जन्मोपरांत युम्ने हिंदी भाषा में पहली बार माँ शब्द बोला इसलिए यह तुम्हारी मातृभाषा है....और अपने मातृभाषा का अपमान अपने माँ के अपमान के बराबर है....
आखिर क्यों......हमारे भारतवर्ष में विदेशी भाषा इतनी हावी क्यों होती जा रही है.....सोचा आपने....????
मेरे भी काफी ऐसे मित्र है जीने हिंदी समझने में काफी कठिनाई होती है...ऐसे मित्रो की पीरा सुनकर या समझ कर काफी दुःख होता है की क्या विदेशी भाषा हमपर इतनी हावी हो गयी है....??
हालाँकि मै मानता हु की आज के वैश्विक जगत में अंग्रेजी की मांग बढ़ी है हर नौकरियों में अंग्रेजी को पहली प्राथमिकता दी गयी है....लकिन कही यह तो नहीं कहा गया है की अंग्रेजी को अपने पर इतना हावी कर लो की बाद में तुम्हारी मातृभासा ही तुम्हे याद नही रहे |
अंग्रेजी पढ़ना बुरी बात नहीं है मै भी पढता हु मुझे भी आती है लकिन मेरा मानना है की चाहे कितना भी अंग्रेजी पढ़िए लकिन देसी रहिये....क्यकि देसी अंदाज में रहने का मज़ा ही कुछ और है...
हिंदी को लेकर मैंने कभी किसी से कुछ कहता नहीं था...कभी कभी मुझे भी लगता था की हिंदी की महत्वकांशा खत्म होती जा रही है...लकिन जब से काशी आया हु हिंदी को लेकर मेरे सारे उलझन सुलझ गए है....मेरे विश्वविद्यालय में सैकड़ो ऐसे विदेशी छात्र है जो हिंदी से डिप्लमो , बैचलर डिग्री,पोस्ट ग्रेजुएट ,और पीएचडी कर रहे है....तो आप ही बताइये अगर वैस्विक जगत में हिंदी की मांग नहीं है तो ये लोग विदेशो से भारत आ कर हिंदी का अध्ययन क्यों कर रहे है |
वर्तमान में हिंदी की दुर्दसा इतनी हो गयी है की गर कोई हिंदी कवि/लेखक कोई किताब प्रकाशित कराता है तो उसकी प्रतिया बाजार में जस की तस परी रह जाती है...वही दूसरी तरफ अंग्रेजी पत्रिकाये अगर इंटरनेट पर ऑनलाइन बिक्री को आती है तो २ घंटे में २००००० प्रतिया बिकते देर नहीं होती....
मित्रो वर्तमान में हिंदी अगर उचाईयो पर नहीं है तो इसका कारण हम है...हमारी मातृभासा कहु या माँ हिंदी का अस्तित्व फिलहाल खतरे में है जिसको बचाना हमारा कर्त्वय है...तो आइये आज हम सब मिलकर संकल्पित हो की चाहे कितनी भी अंग्रेजी सिख ले अपने अंदर से हिन्दीवादी विचारधारा का त्याग नहीं होने देंगे...|
जय हिंदी ,जय हिन्दुस्तान ...क्यकि हिंदुस्तान हम से है और हम युवाओ की ताकत इतनी है की हम हवाओ का भी रुख मोर सकते है तो फिर मै समझता हु की हिंदी को सम्मान दिलाना हमारे लिए कोई बरी बात नहीं होनी चाहिए |
जय हिन्द
लेखनी :-विकाश जी
संपर्क:-7870213118
Subscribe to:
Posts (Atom)