Thursday 31 December 2015

जाते जाते बहुत कुछ दे और ले गया साल "2015"

जब भी कोई नया साल आता है हमारे जहन में बदलाव की लौ ले कर आता है...हम हर साल अपने को एक नये ढांचे में ढालने की कोसिस करते है...इस कशमकश में बहुत कुछ पीछे छुट जाता है....उपलब्धियां तो मिलती है पर बहुत कोई साथ छोर जाता है...कुछ अपने जिसपर हम अनेको सपने देखे होते है वे छोर जाते है...परन्तु जिन्दगी में ऐसे क्षणों में काफी कुछ सिखने को मिलता है...जिन्दगी के नए तौर तरीको को आकलन की जगह अनुभव का सुअवसर प्राप्त होता है...

कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ साल-"2015" में....जब साल 2015 की सुरुआत हुई तो अरमानो व् हौसलाओ का बौछार ले कर आई...बदलाव की लहर जहन में दौर परी थी...बहुत कुछ पाने की ललक थी...पढाई से लराई तक...प्यार से त्यौहार तक...चुकी आज साल का अंतिम दिन है और विगत 364 दिनों में काफी कुछ बीत चूका है...और आज अपने निष्कर्ष निकालने का दिन है सो गरे मुर्दे उखार रहा हूँ...

साल 2015 मेरे लिए कुछ ऐसे क्षण भी लाया था जो मेरे अब तक के जीवन का सबसे बेहतरीन व् सुखद पल था और इस साल में कुछ ऐसे भी पल आये थे जो विगत 4 सालो का मेरे  निजी जीवन का सबसे उदास पल था...

एक तरफ "काशी हिन्दू विश्वविद्यालय" में चयन इस वर्ष का व् अब तक का मेरा सबसे सुखद क्षण था तो वही चंपारण छात्र संघ द्वारा मेरे नेतृत्व में आयोजित "चंपारण शिक्षा जागृति अभियान" का अनाथालय कार्यक्रम वर्ष की सबसे सुखद अनुभूति थी....

इस के अलावे साल 2015 में पढाई...सामाजिक जीवन व् निजी जीवन सब कुछ अलग अलग तरीको से बिता....4 सालो से चले आ रहे प्रेम-प्रसंग का भी अंत इसी साल 2015 में ही हुआ...इसपर ज्यादा नही बोलूँगा क्यकी मेरे इस ब्लॉग से कोई आहत हो ये मुझे कतई पसंद नही...

         खैर जो भी साल 2015 वाकई एक बेहतरीन साल की तरह बिता....प्यार से परिवार और यार तक सबकुछ से कुछ न कुछ सिखने को मिला.....Now a GRAND WELCOME---2016...(a year of hope and changes)

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Vikash jee

Student-BNARAS HINDU UNIVERSITY

Tuesday 22 December 2015

शिक्षा में आधुनिकरण पर बाजारीकरण हावी...!!

एक समय था जब लोग जंगलो में जाकर गुरुओ से शिक्षा ग्रहण करते थे यह वयवस्था सबके लिए लागू होता था चाहे भग्वाआँ श्री कृष्ण हो या भगवान राम अथवा सुदामा से लेकर एकलव्य तक...आज दिन दूनी रात चौगुनी शिक्षा का आधुनिकरण होते जा रहा है....यु कहे तो ...""स्लेट को शिक्षा कंप्यूटर तक पहुंच गयी""!!

                                         परन्तु जैसा की ज्ञात होगा आप सब को की इस आधुनिकरण पर शिक्षा का बाजारीकरण हावी है "अब न तो गुरु गुरु है और न ही शिष्य शिष्य"...ना तो गुरो के दिलो में शिष्यों के प्रति श्रद्धा रही और ना ही शिष्यों के दिल में गुरु के लिए वैसा सम्मान...आज के आधुनिकता के दौर में गुरु शिष्य रिश्ते का भी बाजारीकरण हो गया है...!!!  

                                 वर्तमान के दौर में गुरु शिक्षा के वयवसाई हो गए है और शिष्य ख़रीददार...गुरु शिस्य रिश्ते की शुरुआत ही अब "अर्थ" से शुरू होती है और अर्थ पर समाप्त...

शिक्षा का बाजार योग्य से लेकर अयोग्य शिक्षक वयोसाइओ से सजा परा है ऐसी स्थिति पुरे भारतवर्ष की है...आधुनिकता के इस दौर में वय्वसाईकरण के हावी होने के वावजूद भी बहुत ही मुश्किल से शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण भाग शिष्यों को प्राप्त हो पता है...अधिकाधिक शीषक छात्रों के भविस्य से खेलते नजर आते है....वे अपने रोजगार के चककर में छात्रों को भविस्य में बेरोजगार बनाने में कोई कसार नहीं छोरते...!!!

                                          गुरु शिष्य परम्परा की समाप्ति हो गयी है....आधुनिकता के इस विकाश्वादि सिद्धांत को व्यवसाइकता के लुटेरे लूट गए...बिहार के अधिकाधिक महाविद्यालयों में प्राध्यापक सिर्फ पेमेंट की तारीख देखते रहते है....असली मायने में महाविद्यालयों की शिक्षण वयवस्था को ध्वस्त करने में वहा के प्राध्यापको का भी उतना ही योगदान है जितना शिक्षा का बाजारीकरण करने में बाजारू शिक्षको का!!!

                                             आज का बिहार काफी बदला है बेटियां शिक्षा के प्रति जागृत हुई हैं....बिहार सरकार का साइकिल योजना ने बेटियो को एक पंख जरूर दिया था उड़ाने भरने को....
अब बेटियां भी स्कूल जाने लगी थी...१०वी तक पढ़ाई भी कर ली ...वे आगे पढ़ना चाहती है परन्तु बिहार के  अधिकाधिक महाविद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती....ऐसे में उन बेटीओ पर इस साइकिल रूपी उड़ान का  क्या मतलब जब उनके पंख ही काट लिए गए हो...!!!

अंततः हम यही समझते है की शिक्षा का व्यापारीकरण चरम सीमा पर है और अब यह व्यापारीकरण व्यवसाईकरण का रूप ले चूका है इसलिए इसके समाप्ति के आसार नहीं दीखते...!!

               "vikash jee"

[नोट:-जैसा की आपको बता दूँ शिक्षा का बाजारीकरण तो हुआ है यह बात शत प्रतिशत सही है और अयोग्य शिक्षक शिक्षा के मंडी में बैठे है यह बात भी शत प्रतिशत सही है...परन्तु सारे शिक्षक अयोग्य ही नहीं है कुछ के पास योग्यताएं हैं और वे इस लेखनी में अपवाद माने जाएंगे...अगर आप शिक्षक है और मेरी इस लेखनी से आपको आघात पंहुचा है तो क्षमा चाहूंगा वैसे आप खुद तय करे की आप किस श्रेणी में है...ये मेरे अपने विचार है और यही वर्तमान की वास्तविकता भी है| ]

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जय हिन्द
लेखक:-विकाश जी
[संयोजक-चंपारण छात्र संघ]
छात्र -काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
संपर्क-7870213118

Friday 30 October 2015

महफ़िल महफ़िल मुस्कुराना तो परता है....

कहते है न
"साँसों की सीमा निश्चित है...इच्छाओ का अंत नहीं है...
जिसकी कोई इच्छा ना हो...ऐसा कोई संत नहीं है...''

जैसा की हम सब जानते है हर वयक्ति अपने अंदर अनेको सम्भावनाये ढूंढते रहते है...इन सम्भावनाओ को ढूंढने में उसे अनेको जटिलताओं का सामना करना परता है...वो कभी कभी परेशनिओ से  इतना उलझ जाता है की अकेले में रोता भी है...लकिन मनुष्य की प्रवृति सामजिक है...उसे महफ़िल महफ़िल मुश्कुराना परता है....खुद ही खुद को समझाना भी परता है...रुक रुक कर आगे बढ़ना भी परता है क्यकि मनुष्य अपने जिंदगी में जब तक कोई मुकाम नही पा लेता उसकी जिंदगी खुद उसे ही नीरस लगती है |

    दरशल इस ब्लॉग की शुरुआत में इतना कुछ बताने के पीछे कहानी कुछ और है....यह कहानी मेरे विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले "जन्म से ही अंधे-""सत्यप्रकाश मालवीय जी"" की है....
मालवीय जी से मेरी मुलाक़ात सितम्बर २०१५ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान एक वर्गसाथी के रूप में हुई....देखने में सीधे साधे चेहरे पर हर वक्त मंद मंद मुस्कान हर किसी को सम्मान दे कर बात करने की ललक ने मुझे मालवीय जी की तरफ आकर्षित किया|

वैसे तो सत्यप्रकाश मालवीय थे जन्मांध लकिन कुछ करने की चाहत व् समाज के प्रति इनकी अभिरुचि इन्हे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय तक खीच लाइ ...

                बात करते करते पता चला की मालवीय जी का अपना एक band भी है जिसको वह प्रायः आर्केस्टा के नाम से हम सब का परिचय कराते थे...आर्केस्टा शब्द मुझे थोड़ा अटपटा सा लगता था तो मैंने उनसे इस शब्द को बदले की मांग की तो उन्होंने मुझे बताया की मेरे आर्केस्टा का पूरा नाम है ''नेत्रहीन संगीत संघ".....इस बैंड के माध्यम से मालवीय जी आगरा,बनारस,इलाहाबाद,कानपुर आदि कई छोटे बड़े शहरों में अपने कला का प्रदर्शन कर चुके है.....नेत्रहीन होने के वावजूद भी मालवीय जी की सामाजिकता मुझे काफी भाति थी
सांसारिक सुखसुविधाओ को सहज महसूस करने वाले...इन संसार में रह कर भी संसार को नहीं देख पाने वाले सत्यप्रकाश मालवीय जी की आँख भगवान ने जन्म के दौरान ही इनसे छीन ली थी...फिर भी हर वक्त इनके चेहरे पर मुस्कान तो यही बयाँ करता है की....''महफ़िल महफ़िल मुस्कुराना तो परता है....''अब और लिखने की इच्छा मन ही मन खत्म हो रही है...फिर बाकी किसी दिन और....तब तक धन्यवाद 

written by - vikash jee

contact no.-7870213118

Tuesday 6 October 2015

वर्तमान में "भारत" पर इंडिया हावी...

जी हाँ पढ़ कर कुछ अटपटा लगा होगा लकिन वास्तविकता यही है की आज के २१ वी सदी में हम भारत को भूल कर अपना रुख इंडिया की तरफ कर रहे है....लेकिन आप यह बिलकुल ही भूल रहे है की उस इंडिया में एक भारत भी निवास करता है.....जो की प्रायः गांवो में बसता है...

आज की युवा पीढ़ी भारत को भूल कर इंडिया के साथ खरे है...जी हाँ वही इंडिया जिसका नाम विदेसीओ ने दिया है...विदेशी तो भारत से १९४७ में चले गए लकिन जाते जाते काफी कुछ उन्होंने यहाँ छोर दिया जिसमे अंग्रेजी भाषा , पशिचमी सभ्यता संस्कृति ,आदि प्रमुखतः छोड़ गए जो वर्तमान में हम भारतवासिओ पर मुख्यतः हावी है|

आज के युवाओ का रुझान गांवो से बिलकुल ही हट गया है...वे पिछड़े भारत में नहीं प्रगतिशित इंडिया में रहने को उत्सुक है हालांकि ऐसे युवाओ की संख्या १०० % नहीं है लकिन जो भी है उनमे कुछ विशेषताए है उनकी कल्चर विदेशी है भाषा अंग्रेजी है....वे जानभूझ कर हिंदी बोलना नहीं चाहते


आज एक तरफ इंडिया दिन दूनी रात चुगुनी प्रगति कर रहा है तो वही दूसरी तरफ भारत भूख से रो रहा है...एक तरफ वयवसाय और पूंजीपति वर्ग इंडिया में अपनी खुशहाल जिंदगी वयतीत कर रहे है तो दूसरी तरफ भारत के किसान आत्महत्या करने को मजबूर है....

                              

आज का भारत भूख से रोता है...ठंढ से कापता है....इंडिया इसे देखकर नाक भव सिकोरता है...(यह वाक्य मैंने इस संदर्भ में लिखा है की आज के पूंजीपति के बच्चो को या पूंजीपतियों के परिवार को किसी पिछड़े ग्रामीण इलाके में ले जाकर वहां की मुलभुत सुविधाओ में २ घंटे रख दिए जाए तो उनके जुबान से निश्चित ही यह शब्द निकल परता है....O my god...i hate villagers...i hate village

           एक बात और अगर आपका जन्म १९ वी सदी के भारत में हुआ है तो एक बात आप भी बखूबी मिला सकते है....जब हम जन्मे थे तो अपन का बचपन तो पारले-जी बिस्किट से ही कट गया जो उस समय ३ रूपए के १२ की पैकेट आती थी...

आज के बड़े घराने के बच्चे तो OREO और DARK_FANSTY से कम में सुनते नहीं...पारले जी तो उनके लिए कुत्तो के खाने का बिस्किट है....आपन लोग का बचपन तो १ रुपये में १२ लेमनचूस से गुजरा है...खुद भी कहते थे दोस्तों को भी खिलाते थे...लकिन आज के इंडियन बच्चे "डेरी मिल्क सिल्क" से निचे मानने को तैयार नहीं होत....

आज का इंडिया हरियाली को तरसता है तो वही गांवो में पूर्ण हरियाली है |

मित्रो याद करिये उस गांधी को जिसने इस भारत को आाजदी दिलाई याद करिये कलाम शाहब जैसे महापुरुस को जिन्होंने भारत को एक नई उचाइओ पर ले गए लकिन उनकी भी शुरआत गांवो से ही हुई है....इनलोगो का एक उदेस्य था "चलो गांवो की ओर"


     कहते हुए दुःख होता है की आज गांधी और कलाम नहीं है...इसलिए हमें चाहिए की अपने अंदर एक गांधी पैदा करे...अपने अंदर कलाम पैदा करे...इस सतरंगी इंडिया को छोर पुनः गावो से एक नई शुरुआत करे....तभी हम एक सच्चे और अच्छे भारतवाशी कहलायेंगे और सही मायने में तभी हमे एक सच्चे भारतवासी होने का गौरव प्राप्त होगा.....जय हिन्द


लेखनी:-विकाश जी

संपर्क सूत्र :-7870213118

Sunday 4 October 2015

तो आज के युवाओ को शर्म आती है हिंदी बोलने में.....

यु कहु तो हिंदी हमारी राष्ट्रभासा है लकिन इस राष्ट्रभाषा को जो सम्मान हिन्दुस्तान के युवाओ से मिलनी चाहिए वह नही मिल पा रही रही...आज के युवा हिंदी बोलने में खुद को असहज महसूस करते है...उन्हें तो विदेशी भाषा अंग्रेजी से ही प्यार है....थोड़ी बहुत अंग्रेजी क्या सिख ली वे हिंदी को इस कदर भूल जाते है जैसे उनका इस मातृ भाषा से कोई लगाव ही नहीं....

        मै अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उन अंग्रेजी भसी युवाओ को याद दिलाना चाहता हु की जन्मोपरांत तुम्हे  सबसे पहले जो शब्द बोला वह हिंदी भाषा में ही थी....जन्मोपरांत युम्ने हिंदी भाषा में पहली बार माँ शब्द बोला इसलिए यह तुम्हारी मातृभाषा है....और अपने मातृभाषा का अपमान अपने माँ के अपमान के बराबर है....
                आखिर क्यों......हमारे भारतवर्ष में विदेशी भाषा इतनी हावी क्यों होती जा रही है.....सोचा आपने....????

मेरे भी काफी ऐसे मित्र है जीने हिंदी समझने में काफी कठिनाई होती है...ऐसे मित्रो की पीरा सुनकर या समझ कर काफी दुःख होता है की क्या विदेशी भाषा हमपर इतनी हावी हो गयी है....??
          हालाँकि मै मानता हु की आज के वैश्विक जगत में अंग्रेजी की मांग बढ़ी है हर नौकरियों में अंग्रेजी को पहली प्राथमिकता दी गयी है....लकिन कही यह तो नहीं कहा गया है की अंग्रेजी को अपने पर इतना हावी कर लो की बाद में तुम्हारी मातृभासा ही तुम्हे याद नही रहे |

          अंग्रेजी पढ़ना बुरी बात नहीं है मै भी पढता हु मुझे भी आती है लकिन मेरा मानना है की  चाहे कितना भी अंग्रेजी पढ़िए लकिन देसी रहिये....क्यकि देसी अंदाज में रहने का मज़ा ही कुछ और है...
                हिंदी को लेकर मैंने कभी किसी से कुछ कहता नहीं था...कभी कभी मुझे भी लगता था की हिंदी की महत्वकांशा खत्म होती जा रही है...लकिन जब से काशी  आया हु हिंदी को लेकर मेरे सारे उलझन सुलझ गए है....मेरे विश्वविद्यालय में सैकड़ो  ऐसे विदेशी छात्र है जो हिंदी से डिप्लमो , बैचलर डिग्री,पोस्ट ग्रेजुएट ,और पीएचडी कर रहे है....तो आप ही बताइये अगर वैस्विक जगत में हिंदी की मांग नहीं है तो ये लोग विदेशो से भारत आ कर हिंदी का अध्ययन क्यों कर रहे है |

         वर्तमान में हिंदी की दुर्दसा इतनी हो गयी है की गर कोई हिंदी कवि/लेखक कोई किताब प्रकाशित कराता है तो उसकी प्रतिया बाजार में जस की तस परी रह जाती है...वही दूसरी तरफ अंग्रेजी पत्रिकाये अगर इंटरनेट पर ऑनलाइन बिक्री को आती है तो २ घंटे में २००००० प्रतिया बिकते देर नहीं होती....
           मित्रो वर्तमान में हिंदी अगर उचाईयो पर नहीं है तो इसका कारण हम है...हमारी मातृभासा कहु या माँ हिंदी का अस्तित्व फिलहाल खतरे में है जिसको बचाना हमारा कर्त्वय है...तो आइये आज हम सब मिलकर संकल्पित हो की चाहे कितनी भी अंग्रेजी सिख ले अपने अंदर से हिन्दीवादी विचारधारा का त्याग नहीं होने देंगे...|
जय हिंदी ,जय हिन्दुस्तान ...क्यकि हिंदुस्तान हम से है और हम युवाओ की ताकत इतनी है की हम हवाओ का भी रुख मोर सकते है तो फिर मै समझता हु की हिंदी को सम्मान दिलाना हमारे लिए कोई बरी बात नहीं होनी चाहिए |
जय हिन्द
लेखनी :-विकाश जी
संपर्क:-7870213118

Friday 25 September 2015

"काशी में भी जमने लगी बिहारी चुनाव के चाय की चुस्की"

जहा राख भी रख दो तो वह "पारस" बन जाता है...
यु ही नहीं हर शहर "बनारस" बन जाता है...

 

बनारस इसकी एक अलग गरिमा है...एक अलग पहचान है....भोले बाबा की नगरी है...माँ गंगा की गोद में बसा है...बनारस धरती पर सबसे प्राचीन नगर...बिहारिओ का जमघट है यहाँ...कुल ३२% आबादी यहाँ बिहार से है...एक तरफ बिहार में चुनावी पारा तेज है तो भला भोले बाबा की नगरी बनारस इससे कैसे अछूता रह सकता है....बिहार के कौमुर,बक्सर,रोहतास,मोहनिया,छपरा आदि की काफी आबादी यहाँ है इसके अलावा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में लगभग बिहार के हर जिले से बच्चे है....
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में बिहार के लगभग ४० % आबादी है तभी तो बच्चे इसे मज़ाक में बिहार हिन्दू यूनिवर्सिटी भी कह देते है.....

बनारस के "सामने घाट इलाके,छित्तूपुर ,पाण्डेयपूर ,चितईपुरी,आदि में बिहारी माददाताओ का जमघट है ये जिस चाय के दूकान पर जमते है वहा बिहारी चुनावी महफ़िल जम जाती है...कल मै कॉलेज जाने के क्रम में सुबह सुबह चाय की चुस्की लेने एक चाय के दूकान पर गया...
चाय पिने के दौरान वह बैठे बक्सर के एक मित्र ने बिहार चुनाव के समीकरण पर बहस चीर दी...अब भला मै भी बिहार से हु तो इससे कैसे भाग जाते हमने भी लगा अपना समीकरण पेस करने....फिर कुछ बनारसी भैया लोग भी आ गए चाय पिने कुछ चाचा लोग कुछ बाबा लोग भी..समीकरण इतना जमा की १ चाय की प्याली खत्म करने में कुल ४५ मिनट लग गए मुझे....
कोई विकास के मुद्दे उछाल रहा था तो कोई जंगलराज की बात कर रहा था किसी के लिए लालू नौटंकी तो किसी के लिए मोदी फेकू नजर आ रहे थे...तो कोई कोई नितीश कुमार को गजेरी तक कह दिया.... पटना में संपन्न महागठबंधन की रैली में एक मंच पर सोनिया, नीतीश और लालू तथा भागलपुर में नरेंद्र मोदी की रैली बनारस में रह रहे बिहारी मतदाताओं के बीच चर्चा का विषय है। 

एक तरफ सरको पर बनारसी व् बिहारी लोग चुनावी सरगर्मी का मजा ले रहे है तो भला बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी कैसे छूट सकता है....चुकी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में काफी बच्चे राजनितिक शास्त्र व् समाजशास्त्र से स्नातक कर रहे है और कुछ लोग अपना भविस्य भी राजनीति में लगाना चाहते है...बक्सर से राजनीतिक गतिविधिओं पर नजर रख रहे छात्र अखिलेश पाण्डेय का कहना है की चुनाव लोकतंत्र का महापर्व है और इसको मै नही छोर सकता हालांकि इस बार के चुनावी समीकरण से आहत है इसके वाव्जूत भी लोकतंत्र के पर्व मानाने बक्सर जाएंगे कहते है वोट तो निश्चित ही दूंगा चाहे नोटा ही क्यों न दबाना परे.... इस तरह मै भी उत्सुक हु बिहार चुनाव को लेकर वोट भी देने की सोच रहा हु .....अगर परीक्षा नामक आपदा चुनाव पर कुछ प्रभाव न डाले...तो मै भी बिहार जाऊँगा और चुनाव में अपनी सहभागिता निभाउंगा|

 

"जय हिन्द"

 

लेखनी:-विकाश जी
संपर्क सूत्र:-7870213118


Wednesday 23 September 2015

बिहार चुनाव :- DNA vs NDA

बिहार बिधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गयी है...प्रत्यासी अपना नामंकन देने में लगे है तो पार्टिया एक दूसरे को मुद्दे पर घेरने में......हर पार्टिया दूसरे पार्टियो पर आरोप प्रत्यारोप लगा रही है...यह चुनाव बिहार में इसलिए खास है इस चुनाव में गठबंधनों का मकरजाल है सभी छोटी पार्टिया किसी न किसी बरी पार्टियो से चिपक गयी है और फिर दोनों तरफ बना है महागठबंधन.....यह चुनाव मुख्यतः भाजपा और जदयू के बीच है...

 कोई इसे नितीश बनाम मोदी कह रहा है तो कोई जंगलराजबनाम कमण्डलराज...लकिन मेरे अनुसार मुज़फरपुर में प्रधानमंती के परिवर्तन रैली के बाद यह चुनाव DNA बनाम NDA का हो गया है...जैसा की आपसब को ज्ञात होगा की मोदी में मुज़्ज़फ़रपुर के परिवर्तन रैली में नितीश कुमार के डीएनए पर सवाल उठाया था
परन्तु उसके बाद नितीश कुमार ने अपना राजनितिक कार्ड खेला और   इस डीएनए वाले बात को सम्पूर्ण बिहारी इस्मिता से जोरकर बिहरवासिओ का अपमान बतया और समस्त NDA  को जदयू महागठबंधन डीएनए से घेरने लगी...लोगो के डीएनए सैंपल के तौर पर नाख़ून बाल आदि का कलेक्शन शुरू हुआ और प्रधानमंत्री  को भेजे जाने की तैयारया शुरू हुई...डीएनए वाली बात को सम्पूर्ण बिहरवासिओ तक पहुचाने के लिए पटना गांधीमैदान में बरी रैली भी हुई
जिसमे भी प्रायः स्टॉल लगा कर लोगो के डीएनए को सैंपल के तौर पर लिया गया..... हालांकि चुनाव सर पर है और कोई राजनितिक पार्टिया अपने तरफ से कोई चूक होने देना नहीं चाहते इसलिए सभी नेताजी लोगो की कान खरी है की कौन कब क्या बोलता है...
.एक तरफ  देखा जाए तो  डीएनए के  मुद्दे को बिहारी इस्मिता से जोरकर नितीश कुमार बिहार में बीजेपी की छवि धूमिल कर एक बड़ा वोटबैंक जो जातिवाद से बढ़कर है को अपने पाले में करना चाहते है तो वही दूसरी तरफ बीजेपी भी अपने स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नमो की तबातोर रैलियां कराकर व् बिहार को विशेष पैकेज देकर  जदयू महागठबंधन के सारे समीकरण को धूमिल करने में लगी है.....
दोनों पार्टिया अपने चुनाव प्रचार अभियान में भी कोई कसर नही छोरे है एक तरफ जदयू अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार नितीश कुमार के नाम पर चुनाव लरना चाहती है वही दूसरी तरफ बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी व् विकास के मुद्दे पर मैदान में है  मुकाबला दिलचस्प है लकिन सब तो जनता के हाथ में है और जनता सब जानती है अब देखना है अधिकतम जनता अपना रुख किस ओर करती है 
२०१५ विधानसभा में नतीजों के समीकरन क्या आते है...सरकार मजबूत होती है या विपक्ष यह भी चुनाव बाद विधानसभा कार्यवाही के लिए एक बड़ा सवाल है जिसके जवाब का इन्तेजार को लगभग हर बिहारी जो देश विदेशो में है बिहार चुनाव पर अपनी आखे गराए हुए है अब देखना है आगे क्या होता है....

 

 

बिहार चुनाव पर विशेस.....

लेखनी:- विकाश जी
संपर्क सूत्र:-7870213118 


Tuesday 22 September 2015

तो क्या कृषिमंत्री के नाकामी के कारण मोतिहारी चीनीमिल के गन्ने का मिठास अब तक नहीं ले पाये P.M ??????

बात लोकसभा चुनाव के पहले की है जब बीजेपी के प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी चुनावी सभा को सम्बोधित करने मोतिहारी स्थित गांधी मैदान आये थे...तब उन्होंने मंच से सरकार बनने पर  किसानो की समस्या व् चीनीमिल को सुचारू ढंग से चलने का वादा किये थे और कहा था की "मै दिल्ली में चंपारण के गन्ने का मिठास लेंना चाहता हु "....

    तब गन्ना किसानो के बीच उम्मीद क एक किरण जली  थी की अब उनके गन्ना का बकाया कर्ज मिल जाएगा व् चीनी मिल के पुनः शुरू होने से उनके रोजगार व् गन्ना उद्योग को एक नया आयाम मिलेगा....चुनाव हुई बीजेपी की सरकार बानी अब किसानो की नजर कृषि मंत्रालय पर थी ....वह दिन भी आ गया जब किसानो व् कृषि  का मंत्रालय भी हमारे  मोतिहारी सांसद राधामोहन सिंह जी को मिला ...अब किसान निश्चिंत हो गए थे की उनका बकाया जरूर वापस मिलेगा व् चीनी मिल भी चलने लगेगा...
किसानो ने इसलिए जश्न भी मनाया....लकिन चुनाव के बाद से लेकर अब तक कुल १ वर्ष ३ माह से अधिक समय में न तो कृषि मंत्री ने और न ही कृषि मंत्रायलय ने किसानो की सुधि ली है और न ही चीनी मिल शुरू करने को लेकर कोई ठोस पहल किया है...जब भी कृषि मंत्री मोतिहारी मोतिहारी होते है किसानो का गुट उनसे अवश्य ही मिलता है...और  फिर चलता है वही आश्वासनों का दौर
                वर्तमान में मोतिहारी चीनीमिल की स्थिति बद से बदतर  हो गई है...कोई भी जनप्रतिनिधि इसकी सुधि तक लेना वाजिब नहीं समझता ...चीनीमिल के कर्मचारी आवासो पर आम लोगो का कब्जा है...बस किसान ही है जो अब तक अपनी टकटकी लगाये चीनीमिल के तरफ देख रहे है
 की कब उनका बकाया मिलेगा......और वे टकटकी लगाये भी क्यों न आखिर मेहनत से फसल उगाये है...इनके मेहनत को वे राजनेता क्या जाने जो बस चुनावो के समय २-३ माह के लिए सरको पर होते है...फिर अपनी शानदार AC  वाहनो में...वे किसानो के भावनाओ को नहीं समझते तभी तो हमारे कृषि मंत्री जी ने यह बयां दिया था की "फसल क्षति से नहीं लव अफेयर व् नपुंसकता से आत्महत्या करते है किसान"
                सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री पुनः मोतिहारी आ रहे है चुनावी सभा करने.... संभवतः १३ अक्टूबर को गांधी मैदान मोतिहारी  में उनकी सभा होगी....अगर बात पुनः चीनीमिल की होती है तो PM  को क्या जवाब देंगे हमारे परमादरणीय बरबोले व् किसानो को हीन दृस्टि से देखने वाले कृषि मंत्री राधामोहन सिंह....
                                 सभी तथ्यों को पढ़ने के बाद आपको भी यही लगता होगा की कृषि मंत्री के चलते अब तक चंपारण के गन्ने का मिठास नहीं ले पाये प्रधानमंत्री|



लेखनी:- विकाश जी
संपर्क सूत्र :-7870213118

Saturday 19 September 2015

"अबकी बार - किसका बिहार "

 बिहार में चुनावी दंगल अपने शबाब पर है। सिहांसन पर कब्जा जमाने के लिए सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।उधर, सर्वे करने वाली एजेंसियां भी चुनाव पूर्व ऑपिनियन पोल में बिहार के 16वें विधानसभा की संभावित तस्वीर खींचने में लगे हैं। अब तक तीन एजेंसिय़ों के सर्वे में तस्वीर साफ नहीं है कि इस बार किसका पलड़ा भारी होगा।

नेता लोगो की किस्मत शूली पर है .....इस सबो के बीच हर उम्मीदवार विधानसभा की सीढ़ियाँ चढ़ना चाहता है .....जनता भी निग़ाहें जमाये बैठी है की '''इस बार-किसका बिहार'' .....
                              कोई कहता है की यहाँ  कमल खिलेगा तो कोई कहता है की महागठबंधन की जीत होगी.....सभी पार्टिया अपने जीत का दवा कर रही है....इन सब के वावजूद पार्टिओ पर परिवारवाद हावी है....चाहे लालू यादव का राजद हो या फिर जीतन राम मांझी का हम  चाहे रामविलास पासवान की लोजपा हो....

                                 एक तरफ परिवारवाद का झंडा लिए लालू के दोनों बेटे तेजस्वी व् तेजप्रताप चुनाव लरने को तैयार है तो वही मांझी जी के सुपुत्र को भी इस बार टिकट दिया गया है....इन सब के बीच कल लोजपा ने भी अपने टिकेट बटवारे में परिवारवाद को अलग नही रखा....इस बार लोजपा से परिवारवाद का झंडा लिए रामविलास पासवान के भतीजे  मैदान में है....

                                             पार्टिओ में परिवारवाद के बढ़ावे को देख कर हर पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता निराश है परिवारवाद के वजह से इस बार कई समर्पित कार्यकताओ  का टिकट कटा है...जो अपने लिए क्षेत्र में खूब मेहनत थे व् सही मायनो में वे ही टिकट के वास्विक हकदार थे.... इन सबो को देखकर पार्टिओ से समर्पित कार्यकर्ताओ का मोह भंग हुआ है...जनता भी इस बार के चुनावी समीकरण को नही समझ पा रही  है....
                                        उन्हें समझने में कठिनाई हो  रही है वे भी टकटकी लगाये बैठे है की पता नही इस बार किसकी सरकार बनेगी...कमल खिलेगा या तीर चलेगा....एक तरफ कमल का साथ झोपड़ी,पंखा,टेलीफोन दे रही है तो वही तीर का कमान लिए लालटेन व् पंजा है....
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कोई जंगलराज भगा रहा तो कोई मण्डलराज कर खिलाफ मैदान में है इन सबो के बीच राज्य की बाहरी पार्टिया भी चुनावी समीकरण को बिगारने में पूरी कवायत लगा रहे है....मुस्लिम वोटो को अपने तरफ रिंझाने के लिए इस बार AIMIM  के प्रमुख ओवैसी  ने भी अपनी पार्टी को बिहार के चुनावी दंगल में उतारने का एलान किया है

 ....तो दलित वोटो की राजनीति से जीतराम मांझी व् रामविलास पासवान भी अपने को अछूते नही रखे है....कुशवाहा वोटो को अपनी और खीचने के जिद्दोजहत में रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा है....तो यादवो का सबसे बड़ा नेता कह कर यादव वोटबैंक के पीछे राजद परी है....हिंदुत्वा व् विकास के नारे के साथ भाजपा भी सभी वोटो को अपने कहते में डालना चाह रही है ....
बाकी तो चुनावो में जनता ही जनार्धन है....सब उठापटक तो उसी को करना है...लकिन एक बात तो है चुनावो में उम्मीदववार इतने न बहुरुपिया हो जाते है की उनको पहचानना मुस्किल हो जाता है...फिर भी मालिक तो जनता ही है...रिमोट का बटन तो जनता के पास ही है
...अभी चुनाव में समय है....पता नही जनता का १-१ बटन किस किस को विधानसभा की सीढ़ियाँ चढ़ाता है....
      आगे आप भी इस चुनावी हलचल पर नजर जमाये रहिये हम भी उत्तरप्रदेश से बिहार की राजनीति पर टकटकी लगाये है....अब देखना है अगला ५ साल किसका होता है |

जय हिन्द


लेखनी:-विकाश जी
संपर्क सूत्र :-७८७०२१३११८
                               

Thursday 17 September 2015

"काशी" उत्तरप्रदेश तो "काशी हिन्दू विश्वविद्यालय" उत्तम प्रदेश...

जी हां अगले ही साल उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने को है...इस दौरान सभी राजनितिक पार्टियाँ उत्तरप्रदेश को उतमप्रदेश बनाने को बयानबाजियां कर रहे है...चुकी मै भी अभी बनारस ही हु जो की उत्तरप्रदेश का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है..एक तरफ इस क्षेत्र की महता इसलिए है की यहा देवाधिदेव माहादेव का ज्योतिलिंग "काशी विश्वनाथ" मौजूद है...
माँ गंगा के किनारे मन्दिरों की भरमार है इसलिय इस शहर को मंदिरों व् घाटियों की नगरी भी कहते है ....तो वही दूसरी तरफ यहा भारत का गौरवशाली विश्वविद्यालय "बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी" भी स्थापित है जिसे प्रायः "CAPITAL OF KNOWLEDGE" कहा जाता है।
हमे अब रूबरू होना है " काशी " से उत्तरप्रदेश व् उत्तमप्रदेश के सफर में....
इस सन्दर्भ में मेरे अनुसार काशी उत्तरप्रदेश है तो वही "काशी हिन्दू विश्वविद्यालय"उत्तमप्रदेश...एक तरफ काशी में गंदगी का अम्बार लगा है...
जो प्रायः रास्ट्रीय मीडिया को नजर नही आता वे तो बस कासी के सुप्रसिद्ध घाट "अस्सी " से बनारस के डेवलपमेंट को बता कर चले जाते है की नरेन्द्र मोदी का CLEAN MEDIA MISSON रंग लाया
लकिन वास्तविकता तो यह है की यहा सरको के किनारे कचरे का अम्बार लगा परा है....वही दूसरी ओर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय सुरु से ही एक स्वच्छ वातावरण में निवास करता है....
काशी में बिजली समस्या तो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पुर्णतः 24 घंटा बिजलिकृत....एक तरफ काशी प्रकृति के आगोस से कुछ दूर बसा है वैसे यह शहर माँ गंगा की गोद में तो बसा है लेकिन काफी conjusted शहर होने के कारणवस काफी कम मात्रा में वृक्ष मिलते है तो वही दूसरी तरफ प्रकृति के आगोसमें बसा है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,
काशी में शुद्ध पेय जल की काफी कमी है जबकि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पेयजल की उत्तम वयवस्था है....एक ही शहर में एक 1360 एकर का क्षेत्र उत्तमप्रदेश है तो एक क्षेत्र उत्तरप्रदेश...हालांकि यहा के जनप्रतिनिधि काफी वाकिफ है इससे....उनको यही चाहिए को उत्तरप्रदेश के बनारस को भी उत्तमप्रदेश बनाने के लिए उसे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के तर्ज़ पर सजाना चाहिए तभी उत्तरप्रदेश का यह क्षेत्र उत्तमप्रदेश बन पायेगा।
काशी विदेसियो का गढ़ है
प्रतिवर्ष हजारो सैलानी यहा आते है..अगर वाकई काशी उत्तरप्रदेश से उत्तमप्रदेश बन जाता है तो इसकी गमक विदेसियो द्वारा सम्पूर्ण विश्व में सुन्घेगी...और यहा का प्रमुख नारा हर-हर-महादेव क्षितिज मंडल पर गूंजेगा....इसी के साथ एक बार फिर "हर-हर-महादेव"

जय हिन्द

लेखनी:-विकाश जी (छात्र नेता)
संपर्क सूत्र:-7870213118

"तो क्या इस साल भी मानेगा मोतीझील के मौत पर जश्न"

कोई इसकी तुलना डल झील से करता है तो कोई इसकी सौंदर्यता की माप वुलर झील से करता है लकिन अब कुछ नही बचा है इसके पास यु कहु तो अपने अंतिम साँसे गिण रही है बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के मुख्यालय मोतिहारी के बीचोबीच अपनी भुजाये फैलाये अब कुछ ही दुरी में बसी "मोतीझील" |

कभी इस झील का आकार मोतिओ के हार की तरह था जिसके छत्रछाया में बसे नगर का नाम मोतिहारी परा...सुनने में आता है की यह चीनीमिल के आगे से धनौती नदी के आस पास तक फैला था हालाँकि यह जानकारी मेरे पास पुख्ता नही है लकिन इतना तो पक्का है की अब यह पहले जैसे नहीं है.....अब यह कचरो का अम्बार सा बन गया है ....अकेले सारे सहर की गंदगी झेलता है यह झील ....इसके सौंदर्यीकरण को आये पैसे कही और खर्च कर दिए गए .....इसके आगोस में लोग अतिक्रमण कर अपना घर तक बन लिए और सुख चैन से रह भी रहे है .....

पिछले वर्ष कुछ युवा जागे थे इसके लिए उस भिर में मैं ही शामिल था लकिन अब वे ऐसे न कुम्भकर्णी निद्रा में सोये की उनको जगाना मुस्किल है....नप के कार्यपालक अधिकारी बेतुक सा बयां दे देते है की उनके पास इसमें खर्च करने के लिए राशि नहीं है .....
याद दिलाना चाहूंगा बात पिछले  ही साल की है नप द्वारा ही मोतीझील के संरक्षण को मोतीझील महोत्सव का आयोजन  हुआ था  बड़े बड़े नेता मंत्री विधायक आये थे
कुछ तोइतना  तक कह कर चल दिए की FEB-2015 से इसके सौंदर्यीकरण का काम सुरु हो जाएगा ....ये सब कह कर ये जनता को गुमराह किये फिर चला सांस्कृतिक कार्यकर्मो का दौर .....देर रात तक
            जनता की निग़ाहें FEB - 2015 पर थी वह भी दिन आया और अब तक कुछ नहीं हुआ....लोगो की दिलशाये टूट गई...उन्हें लगा की उनके साथ मज़ाक हुआ है ....सारा माजरा समझने में जनता को जरा भी देर न लगी वह सांस्कृतिक कार्यक्रम मोतीझील क मौत पर जश्न जैसा था.....
                      फिर समय आ गया है अभी सितम्बर चल रहा है नवम्बर में मोतीझील महोत्सव हुआ था....सोच में परा हु की ..


क्या इस बार भी मोतीझील महोत्सव का आयोजन होगा ???
                       क्या इस बार भी जनता गुमराह होगी??????
      क्या इस बार भी मोतीझील के मौत पर जश्न मनेगा ????


Wednesday 16 September 2015

" तो क्या गंगा के पैसो से चलती है राजनीती पार्टिया "

आज भारत में सैकड़ो राजनितिक पार्टियां है जिसमे कुछ का बजट तो करोरो अरबो का है....ये पार्टिया कैसे चलती है इनको चलने को पैसा कहा से आता है समझ नही आता .....कोई कहता की ये पार्टिया अडानी अम्बानी के पैसो से चलता है तो कोई कहता है की इनको चलने के लिए पैसे विदेशो से कला धन के रूप में आता है....पता नही दाल में कुछ में काला है की पूरी की पूरी दाल काली है खैर जो भी हो नेताओ के पहनावे पोशाक व् पार्टिओ के चुनावी प्रचार का खर्च देखकर मुझे भारत की कुल २ पार्टिओ पर सक होता है की क्यकि  ये दोनों पार्टिया गंगा के पैसो से तो नही चल रहे .....जी हाँ सही समझ रहे है आप मैं बात भाजपा और कांग्रेस की ही कर रहा हु इनदोनो पार्टिया गंगा निर्मलीकरण पर पैसा  पानी की तरह पैसा बहा रहे है लकिन गंगा बाद से बदत्तर स्थिति में है आप चाहे गंगा को पटना में देखे या फिर बनारस में ,इलाहाबाद को देखे या फिर भागलपुर को हर जगह गंगा अपने अस्तित्व को खोने के कगार पर है लकिन बजट स्तर में हर साल यह शो अप किया जाता है की इस साल गंगा पर इतना खर्च हुआ....आखिर ये पैसे जाते कहा है इन पैसो का कही बंदरबाट तो नही न होता है या फिर अतीत के १५ साल व् वर्तमान की सरकार कही गंगा के पैसो से ही तो नही चल रही न ......ऐसा सोचना लाजमी है क्यकि आज एक एक रैलियों में करोरो खर्च हो रहे आखिर ये पैसे किसके है कहा से आते है ......

जय हिन्द

लेखनी:- विकाश जी
संपर्क  सूत्र :-07870213118

"मोदी" के लिए इतना आसान नही 'काशी' को 'क्यूटो' बनाना....








काशी जिसे पूर्वांचल का मुख्यालय भी कहा जाता है...इस क्षेत्र के सांसद है हमारे भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ....बात उन दिनों की है जब लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी से प्रधानमंत्री पद के उमीदवार के तौर पर मोदी जी ने अपना नॉमिनेशन दिया था नॉमिनेशन के दौरान मोदी जी ने कहा था अगर बीजेपी जीतती है तो मै काशी को क्योटो बना दूंगा..जी हाँ क्योटो जापान का सबसे विकसित शहर ...इस शहर के तर्ज पर मोदी ने काशी को बनाने का वादा किया था लकिन चुनाव के खत्म हुए व् मोदी को भारत का प्रधानमंत्री व् काशी का सांसद बने कुल १ साल २ महीने से भी अधिक समय हो गया लकिन आज भी काशी वही खरा/परा है जहा चुनाव से पहले  खरा था |
जहा तक मैंने काशी को करीब से देखा है इसके विकास के रोड़े खुद काशीवासी ही है....यु तो पूरी  दुनिया में काशी/बनारस का पान फेमस है जो भी एक बार काशी आता है यह के पान का मज़ा जरूर ले कर जाता है जब बाहरी आकर मज़ा ले रहे है तो भला इससे काशीवासी कैसे अछूते रह सकते है...मेरे अनुसार पान खाना बुरी बात नही है लकिन पान का पित बनारस के सरको,लोगो के दीवालों,बस  में सीट के निचे व् घर/दफ्तर में किवारो के पीछे फेकने से तो काशी इतनी आसानी से क्यूटो नही बन जाएगा|
   बनारस में गंगा जी की भी स्थिति कुछ ठीक नही है प्रतिदिन १०० से अधिक शव गंगा जी के किनारे जला कर उनकी अस्थिया गंगा में प्रवाहित की जाती है दूसरी तरफ प्रतिदिन १० से 25 की संख्या में शव गंगा जी में बहा दिए जाते है और कासी में आस्था की देवी गंगा का स्थान कुछ अलग ही है यहाँ प्रतिदिन गंगा आरती भी होती है जिसमे माँ गंगा की वंदना भी की जाती है तो एक तरफ गंगा आस्था है तो दूसरे तरफ शव जला कर उनकी अस्थिया व् शव को गंगा जी में प्रवाहित करना  भी काशी व् गंगा के विकास में रोड़े परे है
|इससे गंगा विलुप्त हो जाने के कगार पर एक दिन आ जायेगी जिस तरह  से बनारस से वरुणा विलुप्त हो गई अगर भविस्य  में भी गंगा की स्थिति  यही रही तो वह दिन दूर नही होगा जब गंगा भी कासी में नजर नही आएगी....
वैसे काशी को क्यूटो बनाने के पहले सबसे पहले यह के लोगो  की मानसिकता बदलनी होगी तभी काशी बदलेगा...भारत का सबसे प्राचीन शहर काशी के लोग आज भी प्राचीन है कहने को तो काशी एक बड़े क्षेत्र वाला  नगर है यह की आबादी काफी है लकिन यहाँ आज भी प्राचीन मेनटॅलिटी वाले लोग निवास करते है इतना समझ लीजिये न की यहाँ के लोग एक नगर निगम क्षेत्र में निवास  करते है लकिन इतनी भी समझ नही है की अपने पशुओ को बाँध कर रखे कासी कोइ गांव थोरे  ही न है की जहा जी  करे  अपने पशुओ को आवारा छोर दे...ये आवारा पशु दिन भर  काशी के सरको पर नजर आते  है कभी इनके  चलते ट्रैफिक परेसान  है तो कभी जनता....और ये जहा तहा मल मूत्र त्याग कर नगरीए  सौंदर्य वयवस्था को भी प्रभावित करते है...ये भी एक प्रमुख मसला है काशी को क्योटो  बनाने में अवरोध को ...
                      इसके अलावे गंदगी ,यहाँ की भाषा सैली ,और रहनसहन भी अवरोधकों में अपना प्रमुख स्थान रखते है....जिससे कासी को क्योटो बनाने में परेशानिया आएगी..
                      इसलिए जनप्रतिनिधियो को चाहिए की पहले इन पहलुओ पर ध्यान दे फिर इस काशी को क्योटो बनाने के लिए योजनाये लाएंगे | किसी भी नगर के सौंदर्यीकरण में योजनाओ के साथ साथ आवश्यक है की यहाँ के लोगो की विचार-सैली बदले  तभी कुछ सम्भव है प्रतिवर्ष  हजारो सैलानी काशी भर्मण को आते है लकिन इसको देखकर क्या सोचते होंगे या  यहाँ से जाकर  अपने देश  में इसकी  क्या व्याख्यान करते होंगे  ये तो एक काशी वाला  ही बता सकता है अगर आप भी कुछ बताना चाहते है तो एक बार  अवश्य ही काशी आइये और इसे निश्चिंत से इसको घूमिये|
          यहाँ के लोग काफी ही दिलदार होते है पुरे फिल्मी अगर 1 सप्ताह के लिए आप काशी आते है तो मेरा यकीं मानिये आप यही के हो जाएंगे....क्यकि जो काशी में आता है काशी का हो जाता है...|

जय हिन्द


लेखनी:- विकाश जी
संपर्क सूत्र -07870213118