Friday 15 April 2016

सम्भावनाओं के 'भारत' में "भारतमाता" कौन..??

भारत सम्भावनाओं का एक देश है सम्पूर्ण विश्व इस प्रगतिशील भारत से सम्भावनाए तलाश रहा है..
सम्भावनाओं का क्षेत्र सिमित नहीं है राजनीत से लेकर आईटी सेक्टर तक..इस देश की प्रतिभा को विदेशी कंपनियाँ भी सम्भावनाओं के तौर पर अपने देश ले जाती है अगर मै ऐसा कहूँ तो तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नही होगी...भारत एक ऐसा देश है जहाँ से विश्व सम्भावनाए तलाश करता है अपितु उन सम्भावनाओं को काश  सम्पूर्ण भारतवाशी समझ पाते तो आज भारत विकाशशील से विकसित देशो की श्रेणी में सम्मलित होता...
वर्तमान में वैश्विक दृष्टिकोण से भारत दिन दुनी रात चौगुनी प्रगति के पथ पर अग्रसर है लेकिन देश की वर्तमान स्थिति JNU मुद्दे...ओवैसी के भारत माता की जय न बोलने व् एक कौम विशेष के अधिकाधिक लोगो का उसको समर्थन देना व् जबरदस्ती भारत माता की जय बुलवाने व् NIT जम्मू काश्मीर में तिरंगा फहराए जाने पर विवाद आदि की जो स्थिति है उसके अनुसार अगर यह कहा जाए की भारत में स्थिति गृह-युद्ध जैसी है तो इसमें भी कोई अतिशयोक्ति नही होनी चाहिए...हालांकि ये मेरे अपने विचार है...
हम भारत में रह कर भारतीय कम हिन्दू..मुसलमान..बिहारी..बंगाली..
हैदराबादी..काश्मीरी ज्यादा है..
हम राष्ट्रवाद को छोर क्षेत्रवाद व् जातिवाद की तरफ दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ रहे है जो की भविष्य में भारतीय स्मिता के लिए एक बड़ा व् गहरा झटका हो सकता है...आज देश दिन दुनी रात चौगुनी टूट रहा है..
भारत सरकार U.N.O. में भारत की जगह दिलाने में वयस्त है अपितु देश की वर्तमान हालात देश को गर्त में ढकेले जा रहा इसकी चिंता किसी को नही...सोचीय किसी सच्चे देशभक्त पर उस समय क्या गुजरा होगा जब देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में राष्ट्रविरोधी नारों को अंजाम दिया जा रहा था देश के प्रतिस्थित NIT जम्मू काश्मीर में तिरंगा फहराने पर वहां की स्थानीय पुलिस द्वारा रोका गया व् वहाँ उनपर बर्बरता से लाठियाँ भांजी गयी....
और हद तो तब हो जाती है जब JNU जैसे संवेदनशील मामले में पुलिसिया तन्त्र विफल हो जम्मू काश्मीर nit में तिरंगा फहराने वाले छात्रो पर ही केस दर्ज कर लिया जाता है...क्या यहीं भारत माता का सम्मान है...अगर हाँ तो नहीं चाहिए मुझे ऐसी भारत माता व् नहीं चाहिए उनको ऐसा सम्मान....
          "भारत माता की पहली तस्वीर 1905 में बनाई गयी थी जिनमे उनका स्वरूप कुछ ऐसा था"

और हाँ क्या भारत माता की जय बोलना ही भारतीयता का प्रमाण देना है...शायद मेरे अनुसार भारत माता का हिन्दुकरण किया जा रहा है जो की मुसलमान कौम को पसंद नही है..देश के मुसलमान भारत माता की जय इस लिए नहीं बोलना चाहते क्यकी आज की भारत माता का स्वरूप माँ दुर्गा के स्वरूप से मिलता है मतलब की हिन्दुओ को माँ दुर्गा में भारत माता नजर आती है शेर से त्रिशूल तक सभी माँ दुर्गा का और कहीं हाथ में भगवा तो कहीं तिरंगा RSS के वेबसाइट पर भारत माता के हाथ में भगवा है उस पर जय श्री राम लिखा है मतलब की एक धर्म निरपेक्ष राज्य में भारत माता का हिन्दुकरण हो गया है सो मुसलमानों को यह अच्छा नही लगता इसलिए वे भारत माता की जय बोलने से हिचकिचा रहे...इसके अतिरिक्त मेरे जहन को सदेव से एक सवाल झकझोरता है की ये-
**"भारत माता कौन है..??
**इनका अस्तित्व कहाँ से आया...?
**भारत माता की पहली तस्वीर कैसी थी और उसमे वह कैसी दिखती थी...??
**क्या प्राचीन के भारत माता व् आज के भारत माता में अंतर है...??
**एक देश के लोगो का भारत व् भारत माता के प्रति अनेको मत क्यों है...??
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इन्ही सवालों के साथ विदा दीजिये इस बकवास ब्लॉग को अपना इतना समय देने के लिए हम आपके आभारी है जानता हूँ ब्लॉग पढ़ कर आप किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुचे अपितु सवालों में उलझ कर ही रह गये...ये सवाल/उलझन इसलिए लाया हूँ की इसको खुद सुलझाइये और भारत माता को करीब से जानिये क्युकी भारत माता की जय बोलना या ना बोलना कोई मुद्दा नहीं है मुद्दा यह है की भारत माता कौन है.....
जय हिन्द
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{लेखनी :- विकाश जी}
[संयोजक :- चंपारण छात्र संघ,बिहार]
(छात्र :- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)
< सम्पर्क :- 7870213118/9455944297 >

Friday 19 February 2016

केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में तिरंगे लगाकर राष्ट्रभक्ति जगाना.."दुर्भाग्यपूर्ण"..!!

"भारत"..सम्पूर्ण  भू-मंडल  पर इस शब्द की एक अपनी अलग ही गरिमा है..एक अलग ही पहचान है।आर्यावर्त,जम्बूदीप,भारतवर्ष,इंडिया,हिन्दुस्तान आदि कई नामो से विख्यात भारत वर्तमान में किसी के पहचान की मोहताज नहीं। लगभग सभी राष्ट्र में भारतवाशी विधमान है तो भारतीय प्रतिभा सम्पूर्ण क्षितिज पर दिन प्रतिदिन अपनी छाप छोर रहा है।
यह वही देश है जहाँ भगवान् राम से लेकर कृष्ण तक हुए थे...भूमंडल का एकमात्र देश जिसके नाम के बाद माँ शब्द लगाया जाता है और जयघोषो में "भारत माता की जय" से वातावरण गुंजित किया जाता है..आजादी की लड़ाई में न जाने कितने योद्धाओ ने अपनी आहुति इसी भारतवर्ष के लिए ही दी थी..कुछ प्रमुख चेहरे जो भारत की गुलामियों से मुक्त कराने हेतु अपनी आहुति दे दिए पुरे देश में उनके नाम का सम्मान है तो वही कितने योद्धा जो बेनाम आजादी की लड़ाई में शहीद हुए उनके प्रति भी देशवासियों को अपार श्रद्धा है।
वर्तमान में एक तरफ यह देश दुनिया के अग्रणी देशो की कतार में कतारबद्ध होने को प्रयासरत है वही 21 वी शदी में भारत में बढ़ रही आंतरिक समस्याएँ इस देश के पिछड़ेपन व् सम्मान को ठेस पहुचाने में कोई कसर नही छोड़ती।
मामला चाहे रोहित बेमुला का हो या प्रकरण JNU का हो...यह राष्ट्रविरोधी हरकते देश को निचे दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ती।
राष्ट्रद्रोहियो को पकड़ने में पुलिसिया तन्त्र जहाँ एक तरफ सजगता दिखा रहा है वही मामला JNU दिन दुनी रात चौगुनी और प्रगाढ़ होते चला जा रहा है...खैर जो भी हो मुझे भारत के न्यायपालिका में पूर्ण विश्वास है की भारत में पल रहे राष्ट्रद्रोहियो को निश्चित तौर पर सजा दी जायेगी..भले ही JNU का मामला पेच पकड़ते जा रहा है लेकिन इस मामला को पूर्ण रूप से सुलझाकर भारतीय न्यायपालिका अवश्य ही अपना फरमान सुनाएगी।
एक तरफ जहाँ JNU प्रकरण की आग में पूरा देश जल रहा है देशद्रोहियो की तलाश में विफलता को लेकर प्रतिदिन जुलुस,प्रदर्शन,धरना,विरोध दिखा कर जनता अपने अंदर जल रहे आग को प्रदर्शित करना चाहती है...इसी बीच एक ब्यान आता है देश की "मानव संसाधन विकास मंत्रालय" की मंत्री महोदया का की 'सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में 207 फिट ऊँचा "तिरंगा" लगाकर परिसर में देशभक्ति जगाई जायेगी..मंत्री महोदया का यह ब्यान मेरे अनुसार आधा तो सहृदय धन्यवाद देने वाला है तो आधा ब्यान "विश्वविद्यालयों में देशभक्ति जगाई जायेगी" मुझे शर्मिंदा करता है.....
क्या भारतवाशीयों में देशभक्तिता इतनी कमजोर हो गयी है की इसे अब जगाने की आवश्यकता है..क्या भारतवाशी पाक जाने लगे है जो उन्हें तिरंगा लगाकर राष्ट्रभक्तिता जगाई जा रही है...क्या विश्वविद्यालयों में राष्ट्रद्रोह का पाठ पढ़ाया जाने लगा है जो राष्ट्रप्रेम की अलख जगाने को तिरंगे का सहारा लेना पड़ रहा है...!!नहीं HRD मंत्री महोदया "भारत" में राष्ट्रभक्तो की कमी नहीं है..उदाहरण पेश करना उचित नहीं समझता हूँ। स्वतंत्रता की लड़ाई वाले गांधी/आजाद/भगतसिंह/लालबहादुर शास्त्री/रानी लक्ष्मीबाई भले ही अभी न हो लेकिन आज भारतवर्ष में भगत सिंहो/आजादों/गांधीवादीयो/रानी लक्ष्मीबाईयों की कमी नहीं है उस वक्त एक भगत थे एक गांधी थे आज लाखो भगत देश पर कुर्बान होने को मौजूद है...लाखो गांधी देश की लड़ाई लड़ने को तत्पर है...लाखो आजाद सिस्टम की बुराइयों को प्रतिदिन निकाल रहे है..तो लाखो रानियाँ लक्ष्मीबाई की तरह प्रतिदिन देश सेवा कर रही है।
Jnu की 2-4 देशविरोधी कीड़ो से आप किसी विश्वविद्यालय में राष्ट्रवाद की भावना को नहीं भाप सकती..ये देशविरोधी कीटाणुओ से आप समूचे देश के राष्ट्रप्रेम को नहीं आँक सकती.."हमारे जहन में भारत बसता है...दिलो में हर समय तिरंगा लहराता है...धड़कने भारत माता की जय बोलती है"...विश्वविद्यालयों में तिरंगा लगाना आपका एक सकारात्मक पहल है जिसका हम तहे दिल से स्वागत करते है अपितु तिरंगे से देशप्रेम की अलख जगाने के बजाए आप उसी तिरंगे के निचे उन देशद्रोही कीटाणुओ को मसलें तो अतिसुन्दर होता..!!
भारत के हर दिल में तिरंगा बसता है...और यह इतना ठोस है की राष्ट्र विरोधी कीटाणुओ से निगला जाने वाला नहीं है...जय हिन्द
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 लेखनी:- विकाश जी
{छात्र:- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय}
[संयोजक:- चंपारण छात्र संघ,बिहार]
(सम्पर्क:-7870213118)

Thursday 31 December 2015

जाते जाते बहुत कुछ दे और ले गया साल "2015"

जब भी कोई नया साल आता है हमारे जहन में बदलाव की लौ ले कर आता है...हम हर साल अपने को एक नये ढांचे में ढालने की कोसिस करते है...इस कशमकश में बहुत कुछ पीछे छुट जाता है....उपलब्धियां तो मिलती है पर बहुत कोई साथ छोर जाता है...कुछ अपने जिसपर हम अनेको सपने देखे होते है वे छोर जाते है...परन्तु जिन्दगी में ऐसे क्षणों में काफी कुछ सिखने को मिलता है...जिन्दगी के नए तौर तरीको को आकलन की जगह अनुभव का सुअवसर प्राप्त होता है...

कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ साल-"2015" में....जब साल 2015 की सुरुआत हुई तो अरमानो व् हौसलाओ का बौछार ले कर आई...बदलाव की लहर जहन में दौर परी थी...बहुत कुछ पाने की ललक थी...पढाई से लराई तक...प्यार से त्यौहार तक...चुकी आज साल का अंतिम दिन है और विगत 364 दिनों में काफी कुछ बीत चूका है...और आज अपने निष्कर्ष निकालने का दिन है सो गरे मुर्दे उखार रहा हूँ...

साल 2015 मेरे लिए कुछ ऐसे क्षण भी लाया था जो मेरे अब तक के जीवन का सबसे बेहतरीन व् सुखद पल था और इस साल में कुछ ऐसे भी पल आये थे जो विगत 4 सालो का मेरे  निजी जीवन का सबसे उदास पल था...

एक तरफ "काशी हिन्दू विश्वविद्यालय" में चयन इस वर्ष का व् अब तक का मेरा सबसे सुखद क्षण था तो वही चंपारण छात्र संघ द्वारा मेरे नेतृत्व में आयोजित "चंपारण शिक्षा जागृति अभियान" का अनाथालय कार्यक्रम वर्ष की सबसे सुखद अनुभूति थी....

इस के अलावे साल 2015 में पढाई...सामाजिक जीवन व् निजी जीवन सब कुछ अलग अलग तरीको से बिता....4 सालो से चले आ रहे प्रेम-प्रसंग का भी अंत इसी साल 2015 में ही हुआ...इसपर ज्यादा नही बोलूँगा क्यकी मेरे इस ब्लॉग से कोई आहत हो ये मुझे कतई पसंद नही...

         खैर जो भी साल 2015 वाकई एक बेहतरीन साल की तरह बिता....प्यार से परिवार और यार तक सबकुछ से कुछ न कुछ सिखने को मिला.....Now a GRAND WELCOME---2016...(a year of hope and changes)

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Vikash jee

Student-BNARAS HINDU UNIVERSITY

Tuesday 22 December 2015

शिक्षा में आधुनिकरण पर बाजारीकरण हावी...!!

एक समय था जब लोग जंगलो में जाकर गुरुओ से शिक्षा ग्रहण करते थे यह वयवस्था सबके लिए लागू होता था चाहे भग्वाआँ श्री कृष्ण हो या भगवान राम अथवा सुदामा से लेकर एकलव्य तक...आज दिन दूनी रात चौगुनी शिक्षा का आधुनिकरण होते जा रहा है....यु कहे तो ...""स्लेट को शिक्षा कंप्यूटर तक पहुंच गयी""!!

                                         परन्तु जैसा की ज्ञात होगा आप सब को की इस आधुनिकरण पर शिक्षा का बाजारीकरण हावी है "अब न तो गुरु गुरु है और न ही शिष्य शिष्य"...ना तो गुरो के दिलो में शिष्यों के प्रति श्रद्धा रही और ना ही शिष्यों के दिल में गुरु के लिए वैसा सम्मान...आज के आधुनिकता के दौर में गुरु शिष्य रिश्ते का भी बाजारीकरण हो गया है...!!!  

                                 वर्तमान के दौर में गुरु शिक्षा के वयवसाई हो गए है और शिष्य ख़रीददार...गुरु शिस्य रिश्ते की शुरुआत ही अब "अर्थ" से शुरू होती है और अर्थ पर समाप्त...

शिक्षा का बाजार योग्य से लेकर अयोग्य शिक्षक वयोसाइओ से सजा परा है ऐसी स्थिति पुरे भारतवर्ष की है...आधुनिकता के इस दौर में वय्वसाईकरण के हावी होने के वावजूद भी बहुत ही मुश्किल से शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण भाग शिष्यों को प्राप्त हो पता है...अधिकाधिक शीषक छात्रों के भविस्य से खेलते नजर आते है....वे अपने रोजगार के चककर में छात्रों को भविस्य में बेरोजगार बनाने में कोई कसार नहीं छोरते...!!!

                                          गुरु शिष्य परम्परा की समाप्ति हो गयी है....आधुनिकता के इस विकाश्वादि सिद्धांत को व्यवसाइकता के लुटेरे लूट गए...बिहार के अधिकाधिक महाविद्यालयों में प्राध्यापक सिर्फ पेमेंट की तारीख देखते रहते है....असली मायने में महाविद्यालयों की शिक्षण वयवस्था को ध्वस्त करने में वहा के प्राध्यापको का भी उतना ही योगदान है जितना शिक्षा का बाजारीकरण करने में बाजारू शिक्षको का!!!

                                             आज का बिहार काफी बदला है बेटियां शिक्षा के प्रति जागृत हुई हैं....बिहार सरकार का साइकिल योजना ने बेटियो को एक पंख जरूर दिया था उड़ाने भरने को....
अब बेटियां भी स्कूल जाने लगी थी...१०वी तक पढ़ाई भी कर ली ...वे आगे पढ़ना चाहती है परन्तु बिहार के  अधिकाधिक महाविद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती....ऐसे में उन बेटीओ पर इस साइकिल रूपी उड़ान का  क्या मतलब जब उनके पंख ही काट लिए गए हो...!!!

अंततः हम यही समझते है की शिक्षा का व्यापारीकरण चरम सीमा पर है और अब यह व्यापारीकरण व्यवसाईकरण का रूप ले चूका है इसलिए इसके समाप्ति के आसार नहीं दीखते...!!

               "vikash jee"

[नोट:-जैसा की आपको बता दूँ शिक्षा का बाजारीकरण तो हुआ है यह बात शत प्रतिशत सही है और अयोग्य शिक्षक शिक्षा के मंडी में बैठे है यह बात भी शत प्रतिशत सही है...परन्तु सारे शिक्षक अयोग्य ही नहीं है कुछ के पास योग्यताएं हैं और वे इस लेखनी में अपवाद माने जाएंगे...अगर आप शिक्षक है और मेरी इस लेखनी से आपको आघात पंहुचा है तो क्षमा चाहूंगा वैसे आप खुद तय करे की आप किस श्रेणी में है...ये मेरे अपने विचार है और यही वर्तमान की वास्तविकता भी है| ]

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जय हिन्द
लेखक:-विकाश जी
[संयोजक-चंपारण छात्र संघ]
छात्र -काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
संपर्क-7870213118

Friday 30 October 2015

महफ़िल महफ़िल मुस्कुराना तो परता है....

कहते है न
"साँसों की सीमा निश्चित है...इच्छाओ का अंत नहीं है...
जिसकी कोई इच्छा ना हो...ऐसा कोई संत नहीं है...''

जैसा की हम सब जानते है हर वयक्ति अपने अंदर अनेको सम्भावनाये ढूंढते रहते है...इन सम्भावनाओ को ढूंढने में उसे अनेको जटिलताओं का सामना करना परता है...वो कभी कभी परेशनिओ से  इतना उलझ जाता है की अकेले में रोता भी है...लकिन मनुष्य की प्रवृति सामजिक है...उसे महफ़िल महफ़िल मुश्कुराना परता है....खुद ही खुद को समझाना भी परता है...रुक रुक कर आगे बढ़ना भी परता है क्यकि मनुष्य अपने जिंदगी में जब तक कोई मुकाम नही पा लेता उसकी जिंदगी खुद उसे ही नीरस लगती है |

    दरशल इस ब्लॉग की शुरुआत में इतना कुछ बताने के पीछे कहानी कुछ और है....यह कहानी मेरे विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले "जन्म से ही अंधे-""सत्यप्रकाश मालवीय जी"" की है....
मालवीय जी से मेरी मुलाक़ात सितम्बर २०१५ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान एक वर्गसाथी के रूप में हुई....देखने में सीधे साधे चेहरे पर हर वक्त मंद मंद मुस्कान हर किसी को सम्मान दे कर बात करने की ललक ने मुझे मालवीय जी की तरफ आकर्षित किया|

वैसे तो सत्यप्रकाश मालवीय थे जन्मांध लकिन कुछ करने की चाहत व् समाज के प्रति इनकी अभिरुचि इन्हे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय तक खीच लाइ ...

                बात करते करते पता चला की मालवीय जी का अपना एक band भी है जिसको वह प्रायः आर्केस्टा के नाम से हम सब का परिचय कराते थे...आर्केस्टा शब्द मुझे थोड़ा अटपटा सा लगता था तो मैंने उनसे इस शब्द को बदले की मांग की तो उन्होंने मुझे बताया की मेरे आर्केस्टा का पूरा नाम है ''नेत्रहीन संगीत संघ".....इस बैंड के माध्यम से मालवीय जी आगरा,बनारस,इलाहाबाद,कानपुर आदि कई छोटे बड़े शहरों में अपने कला का प्रदर्शन कर चुके है.....नेत्रहीन होने के वावजूद भी मालवीय जी की सामाजिकता मुझे काफी भाति थी
सांसारिक सुखसुविधाओ को सहज महसूस करने वाले...इन संसार में रह कर भी संसार को नहीं देख पाने वाले सत्यप्रकाश मालवीय जी की आँख भगवान ने जन्म के दौरान ही इनसे छीन ली थी...फिर भी हर वक्त इनके चेहरे पर मुस्कान तो यही बयाँ करता है की....''महफ़िल महफ़िल मुस्कुराना तो परता है....''अब और लिखने की इच्छा मन ही मन खत्म हो रही है...फिर बाकी किसी दिन और....तब तक धन्यवाद 

written by - vikash jee

contact no.-7870213118

Tuesday 6 October 2015

वर्तमान में "भारत" पर इंडिया हावी...

जी हाँ पढ़ कर कुछ अटपटा लगा होगा लकिन वास्तविकता यही है की आज के २१ वी सदी में हम भारत को भूल कर अपना रुख इंडिया की तरफ कर रहे है....लेकिन आप यह बिलकुल ही भूल रहे है की उस इंडिया में एक भारत भी निवास करता है.....जो की प्रायः गांवो में बसता है...

आज की युवा पीढ़ी भारत को भूल कर इंडिया के साथ खरे है...जी हाँ वही इंडिया जिसका नाम विदेसीओ ने दिया है...विदेशी तो भारत से १९४७ में चले गए लकिन जाते जाते काफी कुछ उन्होंने यहाँ छोर दिया जिसमे अंग्रेजी भाषा , पशिचमी सभ्यता संस्कृति ,आदि प्रमुखतः छोड़ गए जो वर्तमान में हम भारतवासिओ पर मुख्यतः हावी है|

आज के युवाओ का रुझान गांवो से बिलकुल ही हट गया है...वे पिछड़े भारत में नहीं प्रगतिशित इंडिया में रहने को उत्सुक है हालांकि ऐसे युवाओ की संख्या १०० % नहीं है लकिन जो भी है उनमे कुछ विशेषताए है उनकी कल्चर विदेशी है भाषा अंग्रेजी है....वे जानभूझ कर हिंदी बोलना नहीं चाहते


आज एक तरफ इंडिया दिन दूनी रात चुगुनी प्रगति कर रहा है तो वही दूसरी तरफ भारत भूख से रो रहा है...एक तरफ वयवसाय और पूंजीपति वर्ग इंडिया में अपनी खुशहाल जिंदगी वयतीत कर रहे है तो दूसरी तरफ भारत के किसान आत्महत्या करने को मजबूर है....

                              

आज का भारत भूख से रोता है...ठंढ से कापता है....इंडिया इसे देखकर नाक भव सिकोरता है...(यह वाक्य मैंने इस संदर्भ में लिखा है की आज के पूंजीपति के बच्चो को या पूंजीपतियों के परिवार को किसी पिछड़े ग्रामीण इलाके में ले जाकर वहां की मुलभुत सुविधाओ में २ घंटे रख दिए जाए तो उनके जुबान से निश्चित ही यह शब्द निकल परता है....O my god...i hate villagers...i hate village

           एक बात और अगर आपका जन्म १९ वी सदी के भारत में हुआ है तो एक बात आप भी बखूबी मिला सकते है....जब हम जन्मे थे तो अपन का बचपन तो पारले-जी बिस्किट से ही कट गया जो उस समय ३ रूपए के १२ की पैकेट आती थी...

आज के बड़े घराने के बच्चे तो OREO और DARK_FANSTY से कम में सुनते नहीं...पारले जी तो उनके लिए कुत्तो के खाने का बिस्किट है....आपन लोग का बचपन तो १ रुपये में १२ लेमनचूस से गुजरा है...खुद भी कहते थे दोस्तों को भी खिलाते थे...लकिन आज के इंडियन बच्चे "डेरी मिल्क सिल्क" से निचे मानने को तैयार नहीं होत....

आज का इंडिया हरियाली को तरसता है तो वही गांवो में पूर्ण हरियाली है |

मित्रो याद करिये उस गांधी को जिसने इस भारत को आाजदी दिलाई याद करिये कलाम शाहब जैसे महापुरुस को जिन्होंने भारत को एक नई उचाइओ पर ले गए लकिन उनकी भी शुरआत गांवो से ही हुई है....इनलोगो का एक उदेस्य था "चलो गांवो की ओर"


     कहते हुए दुःख होता है की आज गांधी और कलाम नहीं है...इसलिए हमें चाहिए की अपने अंदर एक गांधी पैदा करे...अपने अंदर कलाम पैदा करे...इस सतरंगी इंडिया को छोर पुनः गावो से एक नई शुरुआत करे....तभी हम एक सच्चे और अच्छे भारतवाशी कहलायेंगे और सही मायने में तभी हमे एक सच्चे भारतवासी होने का गौरव प्राप्त होगा.....जय हिन्द


लेखनी:-विकाश जी

संपर्क सूत्र :-7870213118

Sunday 4 October 2015

तो आज के युवाओ को शर्म आती है हिंदी बोलने में.....

यु कहु तो हिंदी हमारी राष्ट्रभासा है लकिन इस राष्ट्रभाषा को जो सम्मान हिन्दुस्तान के युवाओ से मिलनी चाहिए वह नही मिल पा रही रही...आज के युवा हिंदी बोलने में खुद को असहज महसूस करते है...उन्हें तो विदेशी भाषा अंग्रेजी से ही प्यार है....थोड़ी बहुत अंग्रेजी क्या सिख ली वे हिंदी को इस कदर भूल जाते है जैसे उनका इस मातृ भाषा से कोई लगाव ही नहीं....

        मै अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उन अंग्रेजी भसी युवाओ को याद दिलाना चाहता हु की जन्मोपरांत तुम्हे  सबसे पहले जो शब्द बोला वह हिंदी भाषा में ही थी....जन्मोपरांत युम्ने हिंदी भाषा में पहली बार माँ शब्द बोला इसलिए यह तुम्हारी मातृभाषा है....और अपने मातृभाषा का अपमान अपने माँ के अपमान के बराबर है....
                आखिर क्यों......हमारे भारतवर्ष में विदेशी भाषा इतनी हावी क्यों होती जा रही है.....सोचा आपने....????

मेरे भी काफी ऐसे मित्र है जीने हिंदी समझने में काफी कठिनाई होती है...ऐसे मित्रो की पीरा सुनकर या समझ कर काफी दुःख होता है की क्या विदेशी भाषा हमपर इतनी हावी हो गयी है....??
          हालाँकि मै मानता हु की आज के वैश्विक जगत में अंग्रेजी की मांग बढ़ी है हर नौकरियों में अंग्रेजी को पहली प्राथमिकता दी गयी है....लकिन कही यह तो नहीं कहा गया है की अंग्रेजी को अपने पर इतना हावी कर लो की बाद में तुम्हारी मातृभासा ही तुम्हे याद नही रहे |

          अंग्रेजी पढ़ना बुरी बात नहीं है मै भी पढता हु मुझे भी आती है लकिन मेरा मानना है की  चाहे कितना भी अंग्रेजी पढ़िए लकिन देसी रहिये....क्यकि देसी अंदाज में रहने का मज़ा ही कुछ और है...
                हिंदी को लेकर मैंने कभी किसी से कुछ कहता नहीं था...कभी कभी मुझे भी लगता था की हिंदी की महत्वकांशा खत्म होती जा रही है...लकिन जब से काशी  आया हु हिंदी को लेकर मेरे सारे उलझन सुलझ गए है....मेरे विश्वविद्यालय में सैकड़ो  ऐसे विदेशी छात्र है जो हिंदी से डिप्लमो , बैचलर डिग्री,पोस्ट ग्रेजुएट ,और पीएचडी कर रहे है....तो आप ही बताइये अगर वैस्विक जगत में हिंदी की मांग नहीं है तो ये लोग विदेशो से भारत आ कर हिंदी का अध्ययन क्यों कर रहे है |

         वर्तमान में हिंदी की दुर्दसा इतनी हो गयी है की गर कोई हिंदी कवि/लेखक कोई किताब प्रकाशित कराता है तो उसकी प्रतिया बाजार में जस की तस परी रह जाती है...वही दूसरी तरफ अंग्रेजी पत्रिकाये अगर इंटरनेट पर ऑनलाइन बिक्री को आती है तो २ घंटे में २००००० प्रतिया बिकते देर नहीं होती....
           मित्रो वर्तमान में हिंदी अगर उचाईयो पर नहीं है तो इसका कारण हम है...हमारी मातृभासा कहु या माँ हिंदी का अस्तित्व फिलहाल खतरे में है जिसको बचाना हमारा कर्त्वय है...तो आइये आज हम सब मिलकर संकल्पित हो की चाहे कितनी भी अंग्रेजी सिख ले अपने अंदर से हिन्दीवादी विचारधारा का त्याग नहीं होने देंगे...|
जय हिंदी ,जय हिन्दुस्तान ...क्यकि हिंदुस्तान हम से है और हम युवाओ की ताकत इतनी है की हम हवाओ का भी रुख मोर सकते है तो फिर मै समझता हु की हिंदी को सम्मान दिलाना हमारे लिए कोई बरी बात नहीं होनी चाहिए |
जय हिन्द
लेखनी :-विकाश जी
संपर्क:-7870213118