Sunday 4 October 2015

तो आज के युवाओ को शर्म आती है हिंदी बोलने में.....

यु कहु तो हिंदी हमारी राष्ट्रभासा है लकिन इस राष्ट्रभाषा को जो सम्मान हिन्दुस्तान के युवाओ से मिलनी चाहिए वह नही मिल पा रही रही...आज के युवा हिंदी बोलने में खुद को असहज महसूस करते है...उन्हें तो विदेशी भाषा अंग्रेजी से ही प्यार है....थोड़ी बहुत अंग्रेजी क्या सिख ली वे हिंदी को इस कदर भूल जाते है जैसे उनका इस मातृ भाषा से कोई लगाव ही नहीं....

        मै अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उन अंग्रेजी भसी युवाओ को याद दिलाना चाहता हु की जन्मोपरांत तुम्हे  सबसे पहले जो शब्द बोला वह हिंदी भाषा में ही थी....जन्मोपरांत युम्ने हिंदी भाषा में पहली बार माँ शब्द बोला इसलिए यह तुम्हारी मातृभाषा है....और अपने मातृभाषा का अपमान अपने माँ के अपमान के बराबर है....
                आखिर क्यों......हमारे भारतवर्ष में विदेशी भाषा इतनी हावी क्यों होती जा रही है.....सोचा आपने....????

मेरे भी काफी ऐसे मित्र है जीने हिंदी समझने में काफी कठिनाई होती है...ऐसे मित्रो की पीरा सुनकर या समझ कर काफी दुःख होता है की क्या विदेशी भाषा हमपर इतनी हावी हो गयी है....??
          हालाँकि मै मानता हु की आज के वैश्विक जगत में अंग्रेजी की मांग बढ़ी है हर नौकरियों में अंग्रेजी को पहली प्राथमिकता दी गयी है....लकिन कही यह तो नहीं कहा गया है की अंग्रेजी को अपने पर इतना हावी कर लो की बाद में तुम्हारी मातृभासा ही तुम्हे याद नही रहे |

          अंग्रेजी पढ़ना बुरी बात नहीं है मै भी पढता हु मुझे भी आती है लकिन मेरा मानना है की  चाहे कितना भी अंग्रेजी पढ़िए लकिन देसी रहिये....क्यकि देसी अंदाज में रहने का मज़ा ही कुछ और है...
                हिंदी को लेकर मैंने कभी किसी से कुछ कहता नहीं था...कभी कभी मुझे भी लगता था की हिंदी की महत्वकांशा खत्म होती जा रही है...लकिन जब से काशी  आया हु हिंदी को लेकर मेरे सारे उलझन सुलझ गए है....मेरे विश्वविद्यालय में सैकड़ो  ऐसे विदेशी छात्र है जो हिंदी से डिप्लमो , बैचलर डिग्री,पोस्ट ग्रेजुएट ,और पीएचडी कर रहे है....तो आप ही बताइये अगर वैस्विक जगत में हिंदी की मांग नहीं है तो ये लोग विदेशो से भारत आ कर हिंदी का अध्ययन क्यों कर रहे है |

         वर्तमान में हिंदी की दुर्दसा इतनी हो गयी है की गर कोई हिंदी कवि/लेखक कोई किताब प्रकाशित कराता है तो उसकी प्रतिया बाजार में जस की तस परी रह जाती है...वही दूसरी तरफ अंग्रेजी पत्रिकाये अगर इंटरनेट पर ऑनलाइन बिक्री को आती है तो २ घंटे में २००००० प्रतिया बिकते देर नहीं होती....
           मित्रो वर्तमान में हिंदी अगर उचाईयो पर नहीं है तो इसका कारण हम है...हमारी मातृभासा कहु या माँ हिंदी का अस्तित्व फिलहाल खतरे में है जिसको बचाना हमारा कर्त्वय है...तो आइये आज हम सब मिलकर संकल्पित हो की चाहे कितनी भी अंग्रेजी सिख ले अपने अंदर से हिन्दीवादी विचारधारा का त्याग नहीं होने देंगे...|
जय हिंदी ,जय हिन्दुस्तान ...क्यकि हिंदुस्तान हम से है और हम युवाओ की ताकत इतनी है की हम हवाओ का भी रुख मोर सकते है तो फिर मै समझता हु की हिंदी को सम्मान दिलाना हमारे लिए कोई बरी बात नहीं होनी चाहिए |
जय हिन्द
लेखनी :-विकाश जी
संपर्क:-7870213118

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