Friday 30 October 2015

महफ़िल महफ़िल मुस्कुराना तो परता है....

कहते है न
"साँसों की सीमा निश्चित है...इच्छाओ का अंत नहीं है...
जिसकी कोई इच्छा ना हो...ऐसा कोई संत नहीं है...''

जैसा की हम सब जानते है हर वयक्ति अपने अंदर अनेको सम्भावनाये ढूंढते रहते है...इन सम्भावनाओ को ढूंढने में उसे अनेको जटिलताओं का सामना करना परता है...वो कभी कभी परेशनिओ से  इतना उलझ जाता है की अकेले में रोता भी है...लकिन मनुष्य की प्रवृति सामजिक है...उसे महफ़िल महफ़िल मुश्कुराना परता है....खुद ही खुद को समझाना भी परता है...रुक रुक कर आगे बढ़ना भी परता है क्यकि मनुष्य अपने जिंदगी में जब तक कोई मुकाम नही पा लेता उसकी जिंदगी खुद उसे ही नीरस लगती है |

    दरशल इस ब्लॉग की शुरुआत में इतना कुछ बताने के पीछे कहानी कुछ और है....यह कहानी मेरे विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले "जन्म से ही अंधे-""सत्यप्रकाश मालवीय जी"" की है....
मालवीय जी से मेरी मुलाक़ात सितम्बर २०१५ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान एक वर्गसाथी के रूप में हुई....देखने में सीधे साधे चेहरे पर हर वक्त मंद मंद मुस्कान हर किसी को सम्मान दे कर बात करने की ललक ने मुझे मालवीय जी की तरफ आकर्षित किया|

वैसे तो सत्यप्रकाश मालवीय थे जन्मांध लकिन कुछ करने की चाहत व् समाज के प्रति इनकी अभिरुचि इन्हे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय तक खीच लाइ ...

                बात करते करते पता चला की मालवीय जी का अपना एक band भी है जिसको वह प्रायः आर्केस्टा के नाम से हम सब का परिचय कराते थे...आर्केस्टा शब्द मुझे थोड़ा अटपटा सा लगता था तो मैंने उनसे इस शब्द को बदले की मांग की तो उन्होंने मुझे बताया की मेरे आर्केस्टा का पूरा नाम है ''नेत्रहीन संगीत संघ".....इस बैंड के माध्यम से मालवीय जी आगरा,बनारस,इलाहाबाद,कानपुर आदि कई छोटे बड़े शहरों में अपने कला का प्रदर्शन कर चुके है.....नेत्रहीन होने के वावजूद भी मालवीय जी की सामाजिकता मुझे काफी भाति थी
सांसारिक सुखसुविधाओ को सहज महसूस करने वाले...इन संसार में रह कर भी संसार को नहीं देख पाने वाले सत्यप्रकाश मालवीय जी की आँख भगवान ने जन्म के दौरान ही इनसे छीन ली थी...फिर भी हर वक्त इनके चेहरे पर मुस्कान तो यही बयाँ करता है की....''महफ़िल महफ़िल मुस्कुराना तो परता है....''अब और लिखने की इच्छा मन ही मन खत्म हो रही है...फिर बाकी किसी दिन और....तब तक धन्यवाद 

written by - vikash jee

contact no.-7870213118

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